Thursday, April 30, 2020

भेला किया विदेह

"भेला किया विदेह"

कोन परदेस पिया मोर गेला, कोना क बिसरब नेह
नहि आयल सन्देश कोना छथि भेला किया विदेह

तकैत रहैत छी बाट अखैन्ह धरि आस नहि धूमिल भेल
नहि कनिको आभास भेल छल नहि कोनो संदेह

क्षण भंगुर स्वप्न होइत छैक प्रीत सदैव सजीव
सिक्त भेल मोन डूबि रहल अछि खोजि रहल सिनेह

चिहुंकि उठल छी, नींद उड़ल अछि, कही केकरा ई क्लेश
मंद मंद मुस्कान ठोढ पर झलकैत छलैथ सदेह

भोरे स कोयल कुहुकि रहल अछि, कौआ कुचरय अनेर
कुसुम कामना नहि किछु बाँचल करि गेला ओ अगेह

© कुसुम ठाकुर





आय करू वहिष्कार

"नहि बाँचल अधिकार"

जे प्रेम स सिंचित करैथ घर द्वार परिवार
मात्र एकदिन बान्हि क कियैक ख़ुशी संसार

1908 में शोषण विरुद्ध क्रांति चलल जाहि आस
सड़क पर उतरल छली की मांग भेलैन्ह स्वीकार

झुनझुना त भेंट गेलैन्ह नहि सम्मानक भास
अधिकार के ओट में नहि बाँचल अधिकार

समानताक मांग करब, नहि राखु कोनो आस
आरक्षण अधिकार नहि आत्मबल स्वराज

जाबैत अबला शब्द रहत नहि स्थिति में बदलाव
शब्द कोष स शब्द के आय करू वहिष्कार

© कुसुम ठाकुर

झहरल नोर कियैक एकहि बेर ?

झहरल नोर कियैक एकहि बेर ?

गेल छलहुँ हम अप्पन गाम
नहि बिसरल खेलल कोनो ठाम
आम लताम कटहल आ लीची
आ चारि पर चढ़ल कुम्हरक लत्ती 

बाबा बरहम तर पोखर भरि गेल
तेतरक झूला आब सपना भेल  
बाट धिया केर देखैत माय सब 
छाहरि स वंचित भ गेल  

निपैत छलहुँ संग सखी बहिनपा
दाइक आशीष घर-बर एहि बेर 
माई केर आँगन त पक्का भेल
निमक छाहरि सम्बन्ध जोरि देल 

बाबाक आगमन संग छड़ी खड़ाऊं
सून दलान देखि मोन परि गेल
श्लोकक पाठ शुरू भेल जतs सँ
सिखायल श्लोक नहीं बिसरय देल

घर में तालाअछि सौंसे धूर(धूल) 
बारिक कल, चट भ गेल
इनार देखि बढल नहि डेग
झहरल नोर कियैक एहि बेर ?

-कुसुम ठाकुर -

कठिन समस्या पारितोषिक केर


अछि परिपाटी पारितोषिक केर
बनल समिति पारितोषिक केर

दी केकरा पारितोषिक से
विकट समस्या पारितोषिक केर

चलू सूचि बना दी संग बैस कs
नहि कोनो समस्या पारितोषिक केर

पहिल मानदंड पुरुष वर्ग हो
पैघ तs उचिते पारितोषिक केर

पाग दोपटा पैघ सम्मान
पुरुष महान पारितोषिक केर

नेता आबथि जाहि मंच पर
सहज प्रचार पारितोषिक केर

एहि सs पैघ सेवा की
उपकृत साहित्यकार पारितोषिक केर 

 © कुसुम ठाकुर

हे चन्दा आय बिसरल किया बेर

(आजु हमर पोता दर्श के जन्मदिन छैन्ह .......हुनका चन्दा मामा वाला गीत सब बड़ पसिंद पडैत छैन्ह ................कतबो कानैत  रहैत छथि गाना सुनतहि चुप्प भs जायत छथि .ई चन्दा मामा केर गीत हुनके लेल हुनकर पहिल जन्मदिन पर।)

"हे चन्दा आय बिसरल किया बेर"

हे चन्दा आय बिसरल किया बेर, हे चन्दा केलहुं बहुत अबेर
बौआ हमर बाट तकैत छथि 
नहि बुझियौ आब सबेर 
हे चन्दा ....................

छवि हुनके मुखचन्द्र समायल, जे हमरो छथि बिसेस 
हे चन्दा, उतरू जाहि छी भेष, 
हे चन्दा कानल बौआ अनेर, 
हे चन्दा….................

चन्दा मामा दूर रहथि किया, कहथि ओ हमरा घेरि 
नहि जायथि हमरा छोरि 
जा कहियौन नहि करथि ओ देर
हे चन्दा........................

रुसल दर्श हम कोना मनायब, कहियौ नहि एक बेर 
हे चन्दा, नहि हँसथि छथि मुंह फेर 
हे उगियौ हेतय आब सबेर 
हे चन्दा...............................

कान्ह भिजल आ मोन बेकल अछि, नहि देखैत छथि एको बेर
हे कहथि, दाइ नहि किछुओ लेब
नहि मानथि मामा के बेर
हे चन्दा ................................

-कुसुम ठाकुर-


http://www.youtube.com/watch?v=VdYgbcjRO_k&feature=youtu.be

जन्म भूमि आय मोन परल

(अमेरिका प्रवास के दौरान पहिल बेर जहिया हम सुनहुं जे ओहि ठाम लोक के अपन कब्र के लेल सेहो स्वयं पाई जमा करय परैत छैक तs  कैक  दिन तक हम ओहि विषय में  सोचैत रहि गेलहुँ  . इ कविता ओहि सोच केर उपज अछि. इ कविता हम अप्रवासी भारतीय के ध्यान में राखैत लिखने छी. कविता के माध्यम सs हम ओहि अप्रवासी भारतीय के मनोदशा के कहय चाहैत छियैक जे स्वदेश वापस लौटय चाहय छथि मुदा किछु परिस्थिति वश नहि लौट सकैत छथि।)

"जन्म भूमि आय मोन परल"

जन्म भूमि आय मोन परल, कोना वापस जाई नोर खसल

कही कोना अछि ह्रदय समायल 
मजबूरी किछु सुझि नहीं पायल
मुदा आय फिसलि यदि  जायब
खसलहुं तs  फेर उठि नहि पायब
जन्म भूमि आय मोन परल, कोना वापस जाई नोर खसल

मजबूरी, वश छोरय परल छल 
चकाचौंध तs  सते बहुत छल
मुदा आब हम मझधार में छी
एक  दिस खद्धा दोसर दिस मौत
जन्म भूमि आय मोन परल, कोना वापस जाई नोर खसल

बचेने रही धरोहर में छोरब
मुदा कफ़न अपन सेहो जोरब
गज भरि जमीन ज्यों ओहि ठाम मांगी
संभव जौं होइत कहितहुँ ठानि
जन्म भूमि आय मोन परल, कोना वापस जाई नोर खसल

सांस बसल अछि जाहि जमीन पर
अँखि जौं मुनि तs तृप्त गंगा जल पर
संभव की होयत से तs  नहि जानि
ली जनम फेर ओहि जमीन पर, तैं
जन्म भूमि आय मोन परल, कोना वापस जाई नोर खसल

-कुसुम ठाकुर-

Wednesday, April 29, 2020

अछि दुर्दशा

"अछि दुर्दशा"

कवि महान 
पर्व त मनेलहुं 
सौंसे ढिंढोरा 

फोटो त छल 
कोना में हेरायल 
अछि दुर्दशा 

पाग दुपटा 
नहि जानथि मोल 
मंच आसीन 

चंदा भेटल 
व्यवस्थापक हम 
त बूझत के 

ढर्रा बनल 
किया बदलि हम  
अछि बहाना 

लाखक खर्च 
नहि अछि उद्देश्य 
होय कल्याण 

नेता  ज्यों वक्ता 
संस्कृतिक उत्थान  
होयत कोना  

-कुसुम ठाकुर- 

शिष्य देखल

"शिष्य देखल "

विद्वान छथि  
ओ शिष्य कहाबथि  
छथि विनम्र 

गुरु हुनक 
सौभाग्य हमर ई 
ओ भेंटलथि

इच्छा हुनक 
बनल छी माध्यम
तरि जायब 

भरोस छैन्ह 
छी हमर प्रयास
परिणाम की ?

भाषा प्रेमक 
नहि उदाहरण 
छथि व्यक्तित्व 

छैन्ह उद्गार
देखल उपासक  
नहि उपमा 

कहथि नहि
विवेकपूर्ण छथि 
उत्तम लोक  

सामर्थ्य छैन्ह 
प्रोत्साहन अद्भुत 
हुलसगर

प्रयास करि 
उत्तम फल भेंटs 
तs कोन हानि 

सेवा करथि 
गंगाक उपासक 
छथि सलिल 

- कुसुम ठाकुर -





मैथिली विरोधी

बिहारक चुनाव जँ जँ लग आयल जा रहल अछि सरगर्मी बढी रहल अछि ......कथिक सरगर्मी से तs हम आ समूचा देशक लोक बूझि रहल छथि. नेतागण आरोप प्रत्यारोप एक दोसर पर तेना लगा रहल छथि जेना आशीर्वाद  हो . लेखा जोखा भs रहल अछि मुदा अपन कार्यक नहि....दोसर नेता की नहि केलाह ताहि केर . जनता केर बुझाबय के प्रयास में कोनो तरहक कोताही कियैक छोड़ताह . सूतल नेता सब जागि गेलाह अछि . अपन भरि कार्यकाल मद में मस्त छलथि, बटोरय सs फुर्सत कहाँ छलैन्ह जे ओ सब जनताक सुख दुःख के विषय में सोचितथि.

आब जाहि पर नोन मिरचाई छिरकने छलाह ताहि लहरि केर कम करबाक प्रयास केनाई तs उचिते. जाहि प्रमंडल केर नाम मात्र उगाही करबाक प्रयोजन के लेल भेल होयतैंह ताहि ठाम जा अपन उपस्थिति दर्ज तs करबे करताह..... आ.. वाह रे जनता.

 आजु कतहु हम पढ़य छलहुँ जे कोनो कांग्रेसी नेताक बयान छलैन्ह "नितीश जी मैथिली विरोधी छथि .......चुनाव लग आबि देखि नितीश जी के मैथिली आ विद्यापति याद आबि गेलैन्ह. यदि ई नहि तs मैथिली के सिलेबस सs कियैक हटेलाह". हम ओहि नेता सँ सहमति छी..... नितीश जी मैथिली विरोधी छथि ......ओ मात्र चुनाव लग देखि इ सब देखेबाक लेल कs रहल छथि ........जनता केर अपना पक्ष में करबाक लेल कs रहल छथि. मुदा ओ कांग्रेसी नेता की इ बिसरि गेलाह जे आजु मैथिली भाषाक इ दशा ख़ास कs बिहार में कियैक छैक ? काग्रेसी नेता के जँ मैथिली सँ प्रेम रहितियेंह तs आजु मैथिली बिहारक द्वितीय भाषा रहितियैक . मुदा ओहि समय में मुख्यमंत्री जी वोट लेल मैथिली केर बलि देने छलाह आ आजु नितीश जी के वोटक लेल मैथिली आ विद्यापति के याद आबि गेलैन्ह तs एहि में कोन पैघ गप्प भs गेलैक.

मैथिली आ विद्यापति जहिना नितीश जी के लेल हथियार छैन्ह तहिना ओहि समय में पदासीन मुख्यमंत्री जी के लेल छलैन्ह आ जे मंत्री आजु नितीश जी पर आरोप लगा रहल छथि हुनको लेल . सब अपन अपन स्वार्थ मात्र के लेल . चाहे ओ नितीश जी होइथ वा कोनो आओर नेता ........चाहे ओ हुनका मैथिली सs प्रेम होउक वा नहि होउक ताहि सs की .

मुदा इ सोचनीय विषय अवशय अछि जे लुप्त भेल जारहल एहि समृद्ध भाषा केर कोना बचायल जाय? जाहि भाषा आ विद्वानक प्रतिष्ठा सौंसे अछि जाहि भाषाक अपन व्याकरण अछि अपन इतिहास अछि ओकरा कोना बचायल जाय ? की हमारा लोकनिक कोनो कर्त्तव्य नहि.......मात्र नेता के कोसैत रहि आ हाथ पर हाथ धरि बैसल रहि ?

लुप्त कहला पर किछु लोक केर आपत्ति होयतैंह ......इ हम जानैत छी ....मुदा हमारा हिसाबे मैथिली लुप्त प्राय जेना छैक. कियैक नहि ओकरा अष्ठम सूची में स्थान भेट गेल हो.

एक प्रयास

" एक प्रयास "

हाइकु छैक  
विधा सरल तैयो
रचि ज्यों पाबि  

हमरा लेल 
गर्वक गप्प बस 
हमहू  जानि 

नहि बुझल 
इ विधाक लिखब
कोन आखर 

सलिल जीक 
इ मार्ग प्रदर्शन 
भेटल जानी 

मोन प्रसन्न 
भेटल नव विधा 
छी तैयो शिष्या

डेग बढ़ल 
सोचि नहि छोरब  
ज्यों दी आशीष 

- कुसुम ठाकुर -

अहिंक धीया

संस्कृत साहित्य में सहस्त्रों वर्षों पूर्व त्रिपदिक छंद रचे गए जिनमें गायत्री तथा ककुप प्रसिद्ध हैं. हाइकु मूलतः त्रिपदिक (तीन पदों अर्थात पंक्तियों का ) जापानी छंद है. जापान में इस छंद में प्राकृतिक छटा का वर्णन करने की परंपरा है किन्तु हिन्दी में हाइकु किसी विशेष विषय तक सीमित नहीं है. गीता का हाइकु में अनुवाद हुआ है. हाइकु गीत और ग़ज़ल लिखे गए हैं. हाइकु में खंड काव्य भी है. हाइकु में पंक्तियाँ केवल ३ होती हैं. पहली पंक्ति में ५ अक्षर होते हैं, दूसरी पंक्ति में ७ तथा तीसरी पंक्ति में ५ अक्षर होते हैं.  मूलतः  तो संस्कृत की देन है जो जापान जाकर फिर नया रूप लेकर भारत में आयी कविन्द्र रविन्द्र नाथ जी तथा कुछ अन्य कवि इसे जापान से भारत में लाये तथा इसमें लिखा.हाइकु में अक्षर या वर्ण गिनते  समय लघु या दीर्घ  मात्र में अंतर न कर दोनों को एक माना जाता है. संयुक्त अक्षर (क्त, द्य, क्ष आदि) भी एक ही गिने जाते हैं. जापान में कई अन्य त्रिपदी छंद स्नैर्यु आदि भी हैं.

हाइकु के शिल्प के सम्बन्ध में एक बात और हाइकु में पदों की तुक के बारे में पूरी छूट है. तुक मिलाना जरूरी नहीं है. हिन्दी कविता में सरसता तथा गेयताजनित माधुर्य की परंपरा है, किन्तु केवल समर्थ कवि ही तुक में लिख पाते हैं.

इस दृष्टि से हाइकु के ५ प्रकार हो सकते हैं: १. तुक विहीन, २. पहले-दूसरे पद की तुक समान हो, ३. पहले-तीसरे पद की तुक समान हो, ४. दूसरे-तीसरे पद की तुक समान हो, ५. तीनों पदों की तुक समान हो.


इ हमर पहिल हाइकु अछि जाहि केर श्रेय आचार्य श्री संजीव वर्मा"सलिल" के जाइत छैन्ह . हुनके प्रोत्साहन पर आइ हम अपन पहिल हाइकु लिखलहुं  अछि .

"अहिंक धीया"

आस बनल 
अछि अहाँक अम्बे
हम टूगर

ध्यान धरब
हम कोना आ नहि
सूझे तइयो 

पाप बहुत 
हम कयने छी हे 
अहिंक धीया

जायब कत
आब नहि सूझय
करू उद्धार 

- कुसुम ठाकुर-
  

अलग राज्यक माँग कतेक सार्थक

ओना तs हमर स्वभाव अछि हम नहि लोक के उपदेश दैत छियैक आ नहि अपन मोनक भावना लोकक सोझां में प्रकट होमय दैत छियैक । हम सुनय सबकेर छियैक मुदा हमरा मोन में जे ठीक बुझाइत अछि ओतबा धरि करैत छियैक। एकर परिणाम इ होइत अछि जे हमरा सलाह देबय वाला केर कमी नहि छैक। सब के होइत छैन्ह जे ओ जे कहताह कहतिह से हम अवश्य मानि लेबैन्ह।अपन अपन भावना केर हमरा पर थोपय के कोशिश बहुत लोक करय छथि। परोपदेश देनाइयो आसान होइत छैक । मुदा हमर भलाई केर विषय में के सोचि रहल छथि इ ज्ञान तs हमरा अछि ।  मुदा दोसराक विचार सुनालाक किछु फायदा सेहो छैक। लोकक विचार सुनि अपन विचार व्यक्त करय में आसानी होइत छैक आ आत्म विशवास सेहो बढैत छैक।  

एकटा कहबी छैक "कोठा चढ़ी चढ़ी देखा सब घर एकहि लेखा " सब ठाम कमो बेसी एके स्थिति छैक, मुदा दोसरा केर विषय में कम बुझय में, आ देरी सs बुझय में आबैत छैक, अपन तs लोक के सबटा बुझल रहैत छैक। पारिवारिक हो सामाजिक हो वा देशक, सब ठाम आपस में विचार में मतान्तर होइत रहैत छैक जे कि मनुष्य मात्र के लेल स्वाभाविक छैक आ हेबाक सेहो चाहि । जखैन्ह दस लोकक विचार होइत छैक तs ओहि में किछु नीक किछु अधलाह सेहो विचार सोंझा में आबैत छैक। मुदा आजु काल्हि सब ठाम स्वार्थ सर्वोपरि भs जाइत छैक । लोक के लेल देश समाज सs ऊपर अपन स्वार्थ भs गेल छैक। 

संस्था व न्यास केर स्थापना होइत छैक समाज आ संस्कृति केर उत्थानक लेल । मुदा संस्थाक स्थापना भेलैक नहि कि ओहि संस्थाक मुखिया पद आ कार्यकारणी में सम्मिलित होयबाक लेल राजनीति शुरू भs जाइत छैक । एकटा संस्था में कैयैक टा गुट बनि जाइत छैक । आ ओहि में सदस्य ततेक नहि व्यस्त भs जाइत छथि कि हुनका लोकनि के सामाजिक कार्य आ संस्कृति के विषय में सोचबाक फुर्सते कहाँ रहैत छैन्ह । आ ताहू सs जौं बेसी भेलैक आ बुझि जाय छथि जे आब हुनक ओहि ठाम चलय वाला नहि छैन्ह तs एक टा नव संस्था केर स्थापना कs लैत छथि। सामाजिक कार्य केर नाम पर  साल में एकटा वा दू टा सांस्कृतिक कार्यक्रम कs लैत छथि आ बुझैत छथि समाज केर उद्धार कs रहल छथि । ओहि कार्यक्रम में पैघ पैघ हस्ती , नेता के बजा अपन डंका बजा लैत छथि।बाकि साल भरि गुट बाजी आ साबित करय में बिता दैत छथि जे हुनक कार्यकाल में कार्यक्रम बेसी नीक भेलैक। हम मानय छियैक जे कार्यक्रम अपन संस्कृति केर आइना होइत छैक, मुदा ओ तs स्थानीय कलाकार के मौक़ा दs कs सेहो करवायल जा सकैत छैक। इ कोन समाजक उत्थान भेलैक जे लोक सs मांगि कs कोष जमा कैल जाय आ मात्र कार्यक्रम में खर्च कs देल जाय। बहुतो एहेन बच्चा शहर वा गाम में छथि जे मेधावी रहितो पाई के अभाव में आगू नहि पढि पाबय छथि। दवाई केर अभाव में कतेक लोकक जान नहि बचा पाबय वाला परिवारक मददि केनाई समाजक उद्धार नहि भेलैक? आय काल्हि तs लाखक लाख खर्च करि कs एकटा कार्यक्रम कैल जाइत छैक। कहय लेल हम ओहि महान हस्ती केर पर्व मना रहल छी। कार्यक्रम करू मुदा कि अपन गाम शहर के भूखल के खाना खुआ तृप्त कs ओहि महान हस्ती के श्रद्धाँजलि नहि देल जा सकैत छैक। इ तs मात्र एक दू टा समाज के सहायतार्थ काज भेलैक ओहेन कैयैक टा सामाजिक काज छैक जे कैल जा सकय छैक । यदि सच में लोक के अपन समाज आ संस्कृति सs लगाव छैन्ह तs जतेक कम संस्था रहतैक ततेक नीक काज आ समाजक उत्थान होयतैक। ओहि लेल मोन में भावनाक काज छैक नहि कि दस टा संस्थाक ।

देश में नित्य नव नव राज्यक माँग भs रहल अछि। ओहि में मिथिलांचलक माँग सेहो छैक। हमरा सँ सेहो बहुत लोक पूछय छथि "अहाँ मिथिला राज्य अलग हेबाक के पक्ष में छी कि नहि "? हम एकहि टा सवाल हुनका लोकनि सँ पूछय छियैंह "कि राज्य अलग भेला सँ मिथिलाक उत्थान भs जेतैक "? इ सुनतहि सब के होइत छैन्ह हम मैथिल आ मिथिलाक शुभ चिन्तक नहीं छी। बुझाई छैन्ह जे अलग राज्य बनि गेला सँ मिथिलांचलक काया पलट भs जेतैक । एक गोटे जे अपना के मिथिला के लेल समर्पित कहय छथि, साफ़ कहलाह "मैथिल के मोन में मिथिला के लेल जे प्रेम हेतैक से दोसरा के  नहि" । हमर हुनका सँ एकटा प्रश्न छल "कि पहिने बिहार में मैथिल मुख्य मंत्री, मंत्री नहि भेल छथि "? जवाब भेंटल " ओ सब मैथिल छलथि मिथिलाक नहि"। अलग राज्य भेलाक बाद जे कीयो मुख्य मंत्री होयताह ओ मिथिलाक होयताह आ मात्र मिथिला के लेल सोचताह । 

हमरा इ बुझय में नहि आबैत अछि जे लोकक  मानसिकता के कोना बदलल जा सकैत छैक ? एखैंह ओ दरभंगा के छथि , ओ सहरसा के .....ओ मुंगेर के छथि ....कि  अलग राज्य भेला सँ आदमी केर मानसिकता बदलि जेतैक .....कि दरभंगा , सहरसा आ कि मुंगेर वाला भेद भाव मोन में नहि औतेक ? आ जौं इ भेद भावना रहतैक तs सम्पूर्ण राज्यक विकास कोनाक भs सकैत छैक  ? कि मिथिलाक होइतो ओ सम्पूर्ण मिथिला केर विषय में सोचताह ?

छोट  छोट राज्य नीक होइत छैक , ओकर पक्ष में हमहू छी मुदा बिना राज्यक बंटवारा केने सेहो बहुत काज कैयल जा सकैत छैक, जौं करय चाहि तs । ओना सब अपन स्वार्थ सिद्धि में लागल रहय छथि इ अलग गप्प छैक। कि नीक स्कूल कॉलेज कारखाना के लेल बिना राज्य अलग बनने प्रयास नहि कैयल जा सकैत छैक? कि मात्र मिथिला राज्य बनि गेला सँ मिथिलाक उद्धार भs जयतैक ? मिथिला राज्यक अलग हो ताहि आन्दोलन में अनेको लोक सक्रीय छथि , मुदा हुनका लोकनि सs एकटा प्रश्न .......ओ सब आत्मा सs पुछथि कि ओ सब मात्र राज्य आ समाज के लेल सोचय छथि कि हुनका लोकनि के मोन में लेस मात्र स्वार्थक भावना नहि छैन्ह ?

कैयैक टा राज्य अलग भेलैक अछि मुदा बेसी केर स्थिति पहिने सs बेसी खराब भs गेल छैक, झारखण्ड ओकर उदाहरण अछि । खनिज संपदा सँ संपन्न राज्यक स्थिति बिहार सs अलग भेलाक बाद आओर खराब भs गेल छैक। एहि राज्य में नौ साल के भीतर सात टा मुख्यमंत्री बनि चुकल छथि । लोक के उम्मीद छलैक जे १० साल के भीतर एहि राज्य केर उन्नति भs जयतैक। उन्नति भेलैक अछि, मुदा राज्य केर नहि नेता सब केर । चोर उचक्का खूनि  सब नेता भs गेल छथि आ पैघ सs पैघ गाड़ी में घुमि रहल छथि , देश आ जनता केर संपत्ति केर उपभोग कs रहल छथि इ कि उन्नति नहि छैक ? 

अभिलाषा

"अभिलाषा"

अभिलाषा छलs हमर एक ,
करितौंह हम धिया सँ स्नेह ।
हुनक नखरा पूरा करय मे ,
रहितौंह हम तत्पर सदिखन ।
सोचैत छलहुँ हम दिन राति ,
की परिछ्ब जमाय लगायब सचार ।
धीया तs होइत छथि नैहरक श्रृंगार ,
हँसैत धीया रोएत देखब हम कोना ।
कोना निहारब हम सून घर ,
बाट ताकब हम कोना पाबनि दिन ।
सोचैत छलहुँ जे सभ सपना अछि ,
ओ सभ आजु पूरा भs गेल।
घर मे आबि तs गेलिह धीया ,
बिदा नहि केलहुँ , नय सुन अछि घर ।
एक मात्र कमी रहि गेल ,
सचार लगायल नहिये भेल।
© कुसुम ठाकुर

चुल बुली कन्या

"चुल बुली कन्या बनि गेलहुँ "

बिसरल छलहुँ हम कतेक बरिस सँ ,
अपन सभ अरमान आ सपना ।
कोना लोक हँसय कोना हँसाबय ,
आ कि हँसी में सामिल होमय ।
आइ अकस्मात अपन बदलल ,
स्वभाव देखि हम स्वयं अचंभित ।
दिन भरि हम सोचिते रहि गेलहुँ ,
मुदा जवाब हमरा नहि भेंटल ।
एक दिन हम छलहुँ हेरायल ,
ध्यान कतय छल से नहि जानि ।
अकस्मात मोन भेल प्रफुल्लित ,
सोचि आयल हमर मुँह पर मुस्की ।
हम बुझि गेलहुँ आजु कियैक ,
हमर स्वभाव एतेक बदलि गेल ।
किन्कहु पर विश्वास एतेक जे ,
फेर सँ चंचल , चुलबुली कन्या बनि गेलहुँ ।।

© कुसुम ठाकुर

हे चन्दा आय बिसरल किया बेर"

  (आजु हमर पोता दर्श के जन्मदिन छैन्ह .......हुनका चन्दा मामा वाला गीत सब बड़ पसिंद पडैत छैन्ह ................कतबो कानैत  रहैत छथि गाना सुन...