Thursday, April 30, 2020

जन्म भूमि आय मोन परल

(अमेरिका प्रवास के दौरान पहिल बेर जहिया हम सुनहुं जे ओहि ठाम लोक के अपन कब्र के लेल सेहो स्वयं पाई जमा करय परैत छैक तs  कैक  दिन तक हम ओहि विषय में  सोचैत रहि गेलहुँ  . इ कविता ओहि सोच केर उपज अछि. इ कविता हम अप्रवासी भारतीय के ध्यान में राखैत लिखने छी. कविता के माध्यम सs हम ओहि अप्रवासी भारतीय के मनोदशा के कहय चाहैत छियैक जे स्वदेश वापस लौटय चाहय छथि मुदा किछु परिस्थिति वश नहि लौट सकैत छथि।)

"जन्म भूमि आय मोन परल"

जन्म भूमि आय मोन परल, कोना वापस जाई नोर खसल

कही कोना अछि ह्रदय समायल 
मजबूरी किछु सुझि नहीं पायल
मुदा आय फिसलि यदि  जायब
खसलहुं तs  फेर उठि नहि पायब
जन्म भूमि आय मोन परल, कोना वापस जाई नोर खसल

मजबूरी, वश छोरय परल छल 
चकाचौंध तs  सते बहुत छल
मुदा आब हम मझधार में छी
एक  दिस खद्धा दोसर दिस मौत
जन्म भूमि आय मोन परल, कोना वापस जाई नोर खसल

बचेने रही धरोहर में छोरब
मुदा कफ़न अपन सेहो जोरब
गज भरि जमीन ज्यों ओहि ठाम मांगी
संभव जौं होइत कहितहुँ ठानि
जन्म भूमि आय मोन परल, कोना वापस जाई नोर खसल

सांस बसल अछि जाहि जमीन पर
अँखि जौं मुनि तs तृप्त गंगा जल पर
संभव की होयत से तs  नहि जानि
ली जनम फेर ओहि जमीन पर, तैं
जन्म भूमि आय मोन परल, कोना वापस जाई नोर खसल

-कुसुम ठाकुर-

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