Monday, April 18, 2022

कौआ कुचरय भोरे सs


(आय भोरे उठलहुं तs मोनक भावना के नहि  रोकि  सकलहुं )

"कौआ कुचरय भोरे सs"
पांति लिखय छी हम पिया आय कौआ कुचरय भोरे सs
मोन बेकल अछि आंगन अयलहुँ कौआ कुचरय भोरे सs
मोन में शंका नहि कनिको अछि बैस गेलहुँ हम द्वारे पर
बाट तकैत छी बरस बीति गेल कौआ कुचरय भोरे सs
कही ककरा सs मोनक व्यथा हम नहि बनल मन मीत कियो
मोन में धयने गपक पेटारा कौआ कुचरय भोरे सs
नहि रहल सुध बुध कोनो आब हमरा लोक कहय बकलेल
सबटा बुद्धि अहाँ सs बंधल अछि कौआ कुचरय भोरे सs
हंसी ठठ्ठा त सब करय छी हृदय रहय तैयो भारी
आयब कहिया आबो कहु ने कौआ कुचरय भोरे सs
आँखि खुजल तs ठाढ़ सब छल भौजी काकी आ बाबी
कही ककरा सs अहां नहि आयब कौआ कुचरय भोरे सs
सपना में तs आस रहैत अछि सपना नहि कहियो टूटे
जिबि रहल छी नींद में बुझू कौआ कुचरय भोरे सs
© कुसुम ठाकुर

 

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